Hindi Poetry | Hindi Poetry For All Poets
धूप लिखने धूप के कहर में बैठा है,
कभी जलन मिटाने समंदर में बैठा है।
कितने लोग जी रहे यहां सुकून में,
ये जानने खुदा वो तेरे दर में बैठा है।
महल हुए नसीब चोरी के कलाम को,
दिल से लिखने वाला खंडहर में बैठा है।
सुकून से तकलीफ़ का अहसास क्या लिखें,
गांव से निकलके वो शहर में बैठा है।
कौन पत्थरों को राह में बिछाता है,
लिखने वास्ते वो हर सफर में बैठा है।
अपने हक से कितने हैं वाकिफ़ ज़माने में,
करने इस हिसाब को दफ्तर में बैठा है।
किसके सहारे ये कलाम लिख रहा है "यश",
कोई तो है जो इसके मुकद्दर में बैठा है।
- ग़ज़लकार योगेन्द्र "यश"
धूप लिखने धूप के कहर में बैठा है,
कभी जलन मिटाने समंदर में बैठा है।
कितने लोग जी रहे यहां सुकून में,
ये जानने खुदा वो तेरे दर में बैठा है।
महल हुए नसीब चोरी के कलाम को,
दिल से लिखने वाला खंडहर में बैठा है।
सुकून से तकलीफ़ का अहसास क्या लिखें,
गांव से निकलके वो शहर में बैठा है।
कौन पत्थरों को राह में बिछाता है,
लिखने वास्ते वो हर सफर में बैठा है।
अपने हक से कितने हैं वाकिफ़ ज़माने में,
करने इस हिसाब को दफ्तर में बैठा है।
किसके सहारे ये कलाम लिख रहा है "यश",
कोई तो है जो इसके मुकद्दर में बैठा है।
- ग़ज़लकार योगेन्द्र "यश"
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