बेटी पर कविता | Beti par kavita
मां तेरे गर्भ के अन्दर
देखो कैसे पल रही हुं मैं।
इस अन्धकार में रहते रहते
इतना ऊब गई हुं मैं
देखने को तेरी ये
रंग-बिरगी दुनियां
देखो कितना मचल रही हुं मैं
मां तेरे गर्भ के अन्दर
देखो कैसे पल रही हुं मैं।
खाती हो तुम जो आहार
यूं लगते है मेरे नाज़ुक तन पर
जैसे आग की लौह में
जल रही हुं मैं
मां तेरे गर्भ के अन्दर
देखो कैसे पल रही हुं मैं।
तुम्हारी इन दवाओं ने
मुझ पर इतने वार किए
तुम्ही बताओ मां
आज के युग में बेटी कैसे जिएं
सूर्य अस्त की भांति
देखो कैसे धीरे-धीरे
ढल रही हुं मैं
मां तेरे गर्भ के अन्दर
देखो कैसे पल रही हुं मैं।
मैं थी कितनी कोमल
कितनी नाज़ुक
लेकिन आज तुम्हारे
न चहाने से
देखो एक कंकाल में
बदल रही हुं मैं
मां तेरे गर्भ के अन्दर
देखो कैसे पल रही हुं मैं।
- मोनी शर्मा
Super
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