मुकम्मल जिंदगी कविता
खुदा की रहमत हुई है,
उसे मुझसे मोहब्बत हुई है,
खत्म अब दिल्लगी हुई है,
मुकम्मल जिंदगी हुई है।
वो कमसिन सी हसीना है,
वो लहरों पे चलती सफीना है,
मैं फ़क़त अब्तर हूं यारों,
वो कोहिनूर नगीना है,
इत्तेफाकन ये रजामंदगी हुई है,
मुकम्मल जिंदगी हुई है।
उसे मुझसे जो इश्क हुआ है,
किसी ने मेरे हक में पड़ी दुआ है,
मैं अमलन आबाद हूं यारों,
या मुझे भरम हुआ है,
अजब ये बंदगी हुई है,
मुकम्मल जिंदगी हुई है।
उसकी अदा ने दीवाना बनाया है,
मुझे मजनू मस्ताना बनाया है,
मैंने देखा है उसको छुपके यारों,
जो मेरी अजीज हुई है,
इजहारे सुपुर्दगी हुई है,
मुकम्मल जिंदगी हुई है।
खुदा की रहमत हुई है,
उसे मुझसे मोहब्बत हुई है,
खत्म अब दिल्लगी हुई है,
मुकम्मल जिंदगी हुई है।
- शकुन गुप्ता
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