Gandhi Jayanti Par Speech | गांधी जयंती पर भाषण
आज के इस लेख में हम "गांधी जयंती पर भाषण" आपके लिए लेकर आये हैं। मैं इसे भाषण तो नहीं कहूंगा। लेकिन हां मैं इसे अपने मन के विचार जरूर कहना चाहूंगा। इसे गांधी जयंती पर भाषण कहने का कारण यही है ताकि आप जो इसे ढूंढ़ रहे हैं, इस लेख तक पहुँच पाए और मेरे इन विचारों का लाभ उठा पाए। 2 अक्टूबर को प्रति वर्ष अहिंसा दिवस या गांधी जयंती जिसे हम कहते हैं मनाई जाती है।
अहिंसा दिवस स्वयं अपने नाम से अपना अर्थ प्रकट करता है। अहिंसा के इस दिवस से जुड़ी एक ही खास शख्सियत है, जिन्हें हम राष्ट्र पिता के नाम से जानते हैं। वह शख्सियत और कोई नहीं महात्मा गांधी है। इन्होंने अपने जीवन में ऐसे संघर्ष किये हैं जिस वजह से ये एक महान आत्मा के रूप में याद किये जाते हैं। जिन मसलों को क्रोध से हल किया जाता है, उन्हें स्वयं महात्मा गांधी अहिंसा के बल पर सुलझा लिया करते थे। तभी तो महात्मा गांधी को अहिंसावादी कहा जाता है।
आखिर हम इसी दिन क्यों अहिंसा दिवस मनाते हैं। ये प्रश्न आपके दिमाग में भी आया होगा। सीधा जा जवाब है इसी दिन यानी 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है। महात्मा गांधी जयंती को ही हम अहिंसा दिवस कहते हैं। महात्मा गांधी के विचारों और उनके कार्यों से हमें जो प्रेरणा मिलती है, वो आज के युवा को राष्ट्रहित के लिए काम करने के लिए एक नई ऊर्जा देती है। जब अंग्रेजों ने हमारे सारे अधिकार छीन लिए थे, तब केवल उस दर्द को सहना ही हमारा काम नहीं था। बल्कि हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए कुछ करना था। ठीक यही सोच लेकर गांधी जी अधिकारों की रक्षा करने के लिए लड़ते रहे। लेकिन ये लड़ाई कोई हिंसा वाली नहीं थी। बल्कि ये लड़ाई अहिंसा के पथ पे चलते हुए लड़ी गई थी।
आज हमारे सामने राष्ट्रवाद की सोच रखने वाले कई उदाहरण सामने है। लेकिन ये जो नाम है ये अपनी एक अलग ही पहचान रखे हुए है। राजनीति में तो गांधी थे ही साथ ही आध्यात्म को भी जीते थे। अंग्रेजों के द्वारा कई बार अनादर सहने के बाद उन्होंने ये ठान लिया था कि जो मेरे साथ हो रहा है वो मैं अपने देश के किसी भी नागरिक के साथ नहीं होने दूंगा। इसके फलस्वरूप उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी सोच से सफलता प्राप्त की।
इनका स्वभाव और सरल व्यक्तित्व हमने यह सिखाता है कि व्यक्तित्व कभी दिखावे का मोहताज नहीं होता है। बल्कि हमारा व्यक्तित्व हमारे कर्मों और हमारी सोच से बनता है। ये बात आज के समय में युवा पीढ़ी को सीखने की बहुत जरूरत है। यदि राष्ट्र का निर्माण करना है, तो हमें ऐसी ही सोच लेकर अधिकारों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना होगा।
- लेखक योगेन्द्र "यश"
आज के इस लेख में हम "गांधी जयंती पर भाषण" आपके लिए लेकर आये हैं। मैं इसे भाषण तो नहीं कहूंगा। लेकिन हां मैं इसे अपने मन के विचार जरूर कहना चाहूंगा। इसे गांधी जयंती पर भाषण कहने का कारण यही है ताकि आप जो इसे ढूंढ़ रहे हैं, इस लेख तक पहुँच पाए और मेरे इन विचारों का लाभ उठा पाए। 2 अक्टूबर को प्रति वर्ष अहिंसा दिवस या गांधी जयंती जिसे हम कहते हैं मनाई जाती है।
अहिंसा दिवस स्वयं अपने नाम से अपना अर्थ प्रकट करता है। अहिंसा के इस दिवस से जुड़ी एक ही खास शख्सियत है, जिन्हें हम राष्ट्र पिता के नाम से जानते हैं। वह शख्सियत और कोई नहीं महात्मा गांधी है। इन्होंने अपने जीवन में ऐसे संघर्ष किये हैं जिस वजह से ये एक महान आत्मा के रूप में याद किये जाते हैं। जिन मसलों को क्रोध से हल किया जाता है, उन्हें स्वयं महात्मा गांधी अहिंसा के बल पर सुलझा लिया करते थे। तभी तो महात्मा गांधी को अहिंसावादी कहा जाता है।
आखिर हम इसी दिन क्यों अहिंसा दिवस मनाते हैं। ये प्रश्न आपके दिमाग में भी आया होगा। सीधा जा जवाब है इसी दिन यानी 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है। महात्मा गांधी जयंती को ही हम अहिंसा दिवस कहते हैं। महात्मा गांधी के विचारों और उनके कार्यों से हमें जो प्रेरणा मिलती है, वो आज के युवा को राष्ट्रहित के लिए काम करने के लिए एक नई ऊर्जा देती है। जब अंग्रेजों ने हमारे सारे अधिकार छीन लिए थे, तब केवल उस दर्द को सहना ही हमारा काम नहीं था। बल्कि हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए कुछ करना था। ठीक यही सोच लेकर गांधी जी अधिकारों की रक्षा करने के लिए लड़ते रहे। लेकिन ये लड़ाई कोई हिंसा वाली नहीं थी। बल्कि ये लड़ाई अहिंसा के पथ पे चलते हुए लड़ी गई थी।
आज हमारे सामने राष्ट्रवाद की सोच रखने वाले कई उदाहरण सामने है। लेकिन ये जो नाम है ये अपनी एक अलग ही पहचान रखे हुए है। राजनीति में तो गांधी थे ही साथ ही आध्यात्म को भी जीते थे। अंग्रेजों के द्वारा कई बार अनादर सहने के बाद उन्होंने ये ठान लिया था कि जो मेरे साथ हो रहा है वो मैं अपने देश के किसी भी नागरिक के साथ नहीं होने दूंगा। इसके फलस्वरूप उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी सोच से सफलता प्राप्त की।
इनका स्वभाव और सरल व्यक्तित्व हमने यह सिखाता है कि व्यक्तित्व कभी दिखावे का मोहताज नहीं होता है। बल्कि हमारा व्यक्तित्व हमारे कर्मों और हमारी सोच से बनता है। ये बात आज के समय में युवा पीढ़ी को सीखने की बहुत जरूरत है। यदि राष्ट्र का निर्माण करना है, तो हमें ऐसी ही सोच लेकर अधिकारों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना होगा।
- लेखक योगेन्द्र "यश"
Sir mai apni kavita website par kaise post karu
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