Friendship Day Special Poem In Hindi
मस्त रहता था मस्ती की बातें होती थी,
पता ही न चलता कब दिन ढलता कब रात होती थी,
दुनिया की हर एक दौलत के हम करीब थे,
गरीब थे पर कभी लगा नहीं कि हम गरीब थे,
लड़ते थे पर स्वभाव में हमारे ये कोई शौक न था,
दोस्ती की दवा काम ना आये ऐसा कोई रोग न था,
एक की खुशी से सबके चेहरे पर हँसी रहती थी,
कोई दर्द में होता तो जान उसी में फँसी रहती थी,
हर एक दोस्त चाहे घर वालों के लिए लापता था,
हम तो दौड़ते रहते शहर की हर एक गली का पता था,
गलियों में खेलते थे हमारे कोई ग्राउंड न था,
हारके भी हार मान जाएं ऐसा कोई राउंड न था,
लड़ते थे घरों वाले पर कोई बड़ी धमकियां न थी,
आस पास के घरों में सीसे की खिड़कियां न थी,
पढ़ता साथ-साथ और साथ आराम करता,
घर अपना है या दोस्त का फर्क न पड़ता,
दोस्त थे मेरे भी वो खुशियों का दौर था,
मैं आज भी वही हूँ या पहले कोई और था।
- कवि योगेन्द्र "यश"
मस्त रहता था मस्ती की बातें होती थी,
पता ही न चलता कब दिन ढलता कब रात होती थी,
दुनिया की हर एक दौलत के हम करीब थे,
गरीब थे पर कभी लगा नहीं कि हम गरीब थे,
लड़ते थे पर स्वभाव में हमारे ये कोई शौक न था,
दोस्ती की दवा काम ना आये ऐसा कोई रोग न था,
एक की खुशी से सबके चेहरे पर हँसी रहती थी,
कोई दर्द में होता तो जान उसी में फँसी रहती थी,
हर एक दोस्त चाहे घर वालों के लिए लापता था,
हम तो दौड़ते रहते शहर की हर एक गली का पता था,
गलियों में खेलते थे हमारे कोई ग्राउंड न था,
हारके भी हार मान जाएं ऐसा कोई राउंड न था,
लड़ते थे घरों वाले पर कोई बड़ी धमकियां न थी,
आस पास के घरों में सीसे की खिड़कियां न थी,
पढ़ता साथ-साथ और साथ आराम करता,
घर अपना है या दोस्त का फर्क न पड़ता,
दोस्त थे मेरे भी वो खुशियों का दौर था,
मैं आज भी वही हूँ या पहले कोई और था।
- कवि योगेन्द्र "यश"
Post a Comment