युवा पीढ़ी को समर्पित एक कविता
क्यूँ डरते हो तुम बलिदानों से,
कुछ करना है तो रक्त बहाओ।
घुट घुट कर जीने से बेहतर,
मर जाओ या चेत जगाओ।
खुद में इतनी जोश जगाओ,
गिर जाओ फिर होश में आओ।
गिरना भी एक अहम कड़ी है,
पहचानों,आगे बढ़ जाओ।
मुश्किलों में इतनी बात नही है,
रोक सकें,औकात नहीं है।
तुमसे बढ़कर और न दूजा,
जीने की जज्बात यही है।
ख्वाबों को तुम ऊँचे रखना,
कर्मठता से सींचे रखना,
अपने श्रम पर आश्वस्त रहकर,
बाण धनुष में खींचे रखना।
क्यूँ तेरा चंचल सा मन है,
शिथिल और निश्चल सा तन है,
उठो मिटाओ आलसपन को,
यह जीवन का निष्ठुर रण है।
अब वो सब कुछ पाना है,
निष्ठुरता को हराना है,
झुकना तेरा काम नहीं,
असफलता को झुकाना है।
बस उठने की देरी है,
यह संसार तुम्हारा होगा,
विजय तिलक संग ढोल नगाड़े,
जय जयगान तुम्हारा होगा।
जब भी तुम सफलता पाना,
औरों को पहचान कराना,
उन्नति का तुम पाठ पढ़ाना,
भारत माँ का मान बढ़ाना।
- नवीन कुमार राव
क्यूँ डरते हो तुम बलिदानों से,
कुछ करना है तो रक्त बहाओ।
घुट घुट कर जीने से बेहतर,
मर जाओ या चेत जगाओ।
खुद में इतनी जोश जगाओ,
गिर जाओ फिर होश में आओ।
गिरना भी एक अहम कड़ी है,
पहचानों,आगे बढ़ जाओ।
मुश्किलों में इतनी बात नही है,
रोक सकें,औकात नहीं है।
तुमसे बढ़कर और न दूजा,
जीने की जज्बात यही है।
ख्वाबों को तुम ऊँचे रखना,
कर्मठता से सींचे रखना,
अपने श्रम पर आश्वस्त रहकर,
बाण धनुष में खींचे रखना।
क्यूँ तेरा चंचल सा मन है,
शिथिल और निश्चल सा तन है,
उठो मिटाओ आलसपन को,
यह जीवन का निष्ठुर रण है।
अब वो सब कुछ पाना है,
निष्ठुरता को हराना है,
झुकना तेरा काम नहीं,
असफलता को झुकाना है।
बस उठने की देरी है,
यह संसार तुम्हारा होगा,
विजय तिलक संग ढोल नगाड़े,
जय जयगान तुम्हारा होगा।
जब भी तुम सफलता पाना,
औरों को पहचान कराना,
उन्नति का तुम पाठ पढ़ाना,
भारत माँ का मान बढ़ाना।
- नवीन कुमार राव
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