गांव पर शानदार कविता
शामें नहीं कटतीं,
जब से मैं अपने गांँव से जुदा हूँ ॥
शामें नहीं कटतीं,
जब से मैं अपने गांँव से जुदा हूँ ॥
वो कहते हैं
कूलर, पंखे, ऐशी में ऐश-ओ- आराम से रहता हूँ,
चौपालों को भूलकर सिनेमाघरों की शाम में बहता हूँ ।
मैं उन्हें कैसे समझाऊँ...
जिसके नीचे सब कुछ फीका लगता था
मैं उस पेड़ की शीतल छांँव से जुदा हूँ।
सच कहता हूँ दोस्तों शामें नहीं कटतीं
जब से मैं अपने गांँव से जुदा हूँ ॥
उनको लगता है
वाटर पार्क, स्विमिंग पूल, आर्टिफिशियल झरनों में मस्तियां करता हूँ,
पानी के बड़े डेमो में घूमने के लिए बेश कीमती कश्तियां रखता हूँ ।
मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊँ...
जिस में बैठकर जन्नत तक का सफर करते थे हम
मैं उस तालाब की टूटी फूटी पटवारी नाव से जुदा हूँ।
सच कहता हूँ दोस्तों शामें नहीं कटती
जब से मैं अपने गांव से जुदा हूँ ॥
उनको लगता है
मॉल, क्लब, पार्कों में किसी का दीदार करता हूँ,
भूल कर उन्हें किसी और से प्यार करता हूँ ।
लेकिन मैं उन्हें कैसे समझाऊ...
पनघट पर किसी के पैरों में बंध कर घुँघरू सा बजता था,
आज मैं उस पाँव से जुदा हूँ ।
सच कहता हूं दोस्तों शामें नहीं कटती
जब से मैं अपने गांव से जुदा हूँ ॥
- मिस्टर आकाश कुमार
सर बहुत-बहुत धन्यवाद मेरी कविता प्रकाशित करने के लिए उम्मीद है आप हमारे लिए इसी तरह से कार्य करते रहें
ReplyDeleteNice bhai
ReplyDeleteVery nice lines
ReplyDeleteThanx to all
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