Ganesh chaturthi poem
हे लम्बोदर , हे गजानन,
रूप सुहाना है, मनभावन।
मंगलकारी , तू शुभनायक,
करुणामयी, सिद्धि विनायक।
मन में हर्ष,उल्लास भर जावे,
जब हृदय श्री गणेश ध्यावे।
कोमल चरण,तन आभूषण साजे,
गजराज बिन,अब मन न लागे।
रूप सलोना,जैसे सोना,
मूषक सवारी ,है शिवगण खिलौना।
अंग रंग,मन गुलाल भी भावे,
शुभ कार्यवस,जब बालचंद्र पधारे।
गौरीसूत हे, शिवनंदन,
भक्त करें,तेरा अभिनंदन।
विघ्नहर्ता जब रथ से आवे,
ढोल नगाड़ा,ताल में बाजे।
गुणगान तेरी करें है,धरती,
आकाश छू रही,तेरी कीर्ति।
तुम्हे खिलाऊँ ,मोदक मिश्री,
शुभ मुरत ना,मन से बिसरी।
एकाग्र होक बनाऊं, मंगलमूर्ति,
मैं श्रद्धा से मनाऊं, गणेश चतुर्थी।
- रिंकु कुमार जैसवारा
हे लम्बोदर , हे गजानन,
रूप सुहाना है, मनभावन।
मंगलकारी , तू शुभनायक,
करुणामयी, सिद्धि विनायक।
मन में हर्ष,उल्लास भर जावे,
जब हृदय श्री गणेश ध्यावे।
कोमल चरण,तन आभूषण साजे,
गजराज बिन,अब मन न लागे।
रूप सलोना,जैसे सोना,
मूषक सवारी ,है शिवगण खिलौना।
अंग रंग,मन गुलाल भी भावे,
शुभ कार्यवस,जब बालचंद्र पधारे।
गौरीसूत हे, शिवनंदन,
भक्त करें,तेरा अभिनंदन।
विघ्नहर्ता जब रथ से आवे,
ढोल नगाड़ा,ताल में बाजे।
गुणगान तेरी करें है,धरती,
आकाश छू रही,तेरी कीर्ति।
तुम्हे खिलाऊँ ,मोदक मिश्री,
शुभ मुरत ना,मन से बिसरी।
एकाग्र होक बनाऊं, मंगलमूर्ति,
मैं श्रद्धा से मनाऊं, गणेश चतुर्थी।
- रिंकु कुमार जैसवारा
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