तीन मुक्तक -
कि मैं हरदम तुम्हारे प्यार को इक मान दे दूंगी
बना रिश्ता नया जो ये उसे सम्मान दे दूंगी
कभी आए हमारे पास जो मिलने की चाहत से
तभी पहना तुम्हें राखी नई पहचान दे दूंगी
मंजिलों की चाह में, घर से दूरी होने लगी
आज मेरी जिंदगी में, नइ सुबह होने लगी
है अभी उम्मीद छू, लूंगी बुलंदी मै कभी
देख मेरी कोशिशें, ये किस्मतें रोने लगी
साथ हो जो नेह मां का बाप का आशीष हो
भारती मां के लिए कृपाण पे भी शीष हो
सत्य से पीछे हटूं मैं हो कभी ऐसा नहीं
देश के सम्मान में न्योछार मेरा शीष हो
- इति शिवहरे
धन्यवाद
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