"नारी का बुरा हाल"
आज का दौर कैसा हो गया है,
इंसानियत का रूप कहाँ खो गया है,
नारी का सतीत्व सूली चढ़ जाता है,
ना जाने क्यूँ उसे इंसाफ नहीं मिल पाता है,
हे मेरे मौला। क्या कहर तूने बरपाया है,
,"वाह रे। शैतान तूने क्या हुनर पाया है"।।2
एक दरिंदे ने हवस में आकर,
एक बचपन को धो दिया,
एक मासूम ने अपना मासूम सा ,
बचपन खो दिया,
किस तरह तूने अपनी,
पहचान को बढ़ाया है।
वाह रे।.........
नारी से जन्मा है तू,
नारी से जीवन पाया है,
कड़ी धूप में जिसने,
किया तुझ पर साया है,
किस तरह से तूने ,
एक मासूम को तड़पाया है।
वाह रे।........
एक मासूम के जीवन से,
तूने खुशियों को बिन लिया,
एक मासूम से तूने,
उसके चिर को छीन लिया,
तड़पाते हुए उस मासूम को,
तेरा हाथ नहीं कंपकंपाया है।
वाह रे।..........
एक खुशनुमा आशियाने में,
तूने आग लगाई है,
सोच जरा कैसे करेगा,
इस गुनाह की भरपाई है।
ये दुनिया को तूने,ये कैसा रूप दिखाया है
वाह रे।.......
दो सजा उसे , जो नारी का अपमान करे
दो फाँसी उसे,जो नारी का बुरा हाल करे
आज फिर इन्साफ ने ,
कानून के सामने हाथ फैलाया है।
" वाह रे। शैतान तूने क्या हुनर पाया है"।।2
-दीपशिखा नागराज
आज का दौर कैसा हो गया है,
इंसानियत का रूप कहाँ खो गया है,
नारी का सतीत्व सूली चढ़ जाता है,
ना जाने क्यूँ उसे इंसाफ नहीं मिल पाता है,
हे मेरे मौला। क्या कहर तूने बरपाया है,
,"वाह रे। शैतान तूने क्या हुनर पाया है"।।2
एक दरिंदे ने हवस में आकर,
एक बचपन को धो दिया,
एक मासूम ने अपना मासूम सा ,
बचपन खो दिया,
किस तरह तूने अपनी,
पहचान को बढ़ाया है।
वाह रे।.........
नारी से जन्मा है तू,
नारी से जीवन पाया है,
कड़ी धूप में जिसने,
किया तुझ पर साया है,
किस तरह से तूने ,
एक मासूम को तड़पाया है।
वाह रे।........
एक मासूम के जीवन से,
तूने खुशियों को बिन लिया,
एक मासूम से तूने,
उसके चिर को छीन लिया,
तड़पाते हुए उस मासूम को,
तेरा हाथ नहीं कंपकंपाया है।
वाह रे।..........
एक खुशनुमा आशियाने में,
तूने आग लगाई है,
सोच जरा कैसे करेगा,
इस गुनाह की भरपाई है।
ये दुनिया को तूने,ये कैसा रूप दिखाया है
वाह रे।.......
दो सजा उसे , जो नारी का अपमान करे
दो फाँसी उसे,जो नारी का बुरा हाल करे
आज फिर इन्साफ ने ,
कानून के सामने हाथ फैलाया है।
" वाह रे। शैतान तूने क्या हुनर पाया है"।।2
-दीपशिखा नागराज
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