"आया सावन मास है"
घने काले मेघो में ही
दिखाई देती आस है
आखिर यही बुझाते
वसुंधरा की प्यास है
उष्ण धरा कर रही मेघों से अरदास है
मेघ बरसना झूम-झूम
आया सावन मास है
सूरज की आग को खुद में मेघ समेटे है
मेघ काले है जैसे तन पर राख लपेटे है
चंद्र सी शीतलता जिनके पास है
मेघ बरसना झूम-झूम
आया सावन मास है
खेत-खलियानो में हरियाली छा जाती है
एक ओर मासूमो को चिंता खायी जाती है
तर सड़को पर आखिर नींद किसे आ जाती है
हाल-ए-जग देख
मेघ भी उदास है
घनघोर गरज के साथ बरसना
आया सावन मास है।।
-सुनील कुमार दीक्षीत
बहुत ही सुंदर कविता है। और उससे भी सुंदर उसकी लाइन हैं।
ReplyDeleteExlent।
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