आज हम प्रस्तुत करते हैं हमारे रचनाकार सलिल सरोज की रचना और हमें ये रचना प्रस्तुत करते हुए बेहत हर्ष है। हम इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं-
जितना जी चाहे ,तुम खूब मेरा इम्तहान लेना
ज़िंदगी, पहले तुम मुझे जीने का सामान देना
मैं छोड़ सकूँ अपने निशाँ मंज़िल के सीने पे
मेरी राहों में थोड़ी हँसी, थोड़ी मुस्कान देना
न चुप हो जाऊँ कभी भी किसी सितमसाई पे
गर मुँह दिया है तो जरूर सच्ची ज़ुबान देना
ज़माने का शक्ल झुलसा हुआ है, देर लगेगी
मरम्मत के लिए मेरी रूह को इत्मीनान देना
मैं जीत जाऊँ ये जंग मोहब्बत के कशीदों से
पर जरूरत पड़े तो बाक़ायदा तीर-कमान देना
- सलिल सरोज
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