लिखना सीखिये मंच की काव्य प्रतिभाओं की चुनी गई इस माह की पांच रचनाएं हम प्रस्तुत करते हैं। हो सकता है कुछ नवीन रचनाकार की रचनाओं के शब्दों में त्रुटि हो लेकिन इन रचनाकार की काव्य क्षेत्र में लग्न और भाव को ध्यान में रखकर इनकी रचनाओं को स्थान देकर इन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है, हम उम्मीद करते हैं इसी निष्ठा से ये ऐसे ही बेहतर लेखन करते रहेंगे। हम इनकी रचनाओं को प्रस्तुत करते हुए बड़ा हर्ष का अनुभव कर रहे हैं और हम इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं-
1. कर कुछ ऐसा
कर कुछ ऐसा विश्व सीख ले,भारत के गलियारों से।
कर कुछ ऐसा भारत निकले,अंधकार के द्वारों से।।
कर कुछ ऐसा विश्व मौज ले,घाटी के गलियारों में।
कर कुछ ऐसा बनें सुर्खियाँ,तेरी भी अखबारों में।।
कर कुछ ऐसा भारत निकले,अंधकार के द्वारों से।।
कर कुछ ऐसा विश्व मौज ले,घाटी के गलियारों में।
कर कुछ ऐसा बनें सुर्खियाँ,तेरी भी अखबारों में।।
भारत को फिर पुनः रंग दो,विश्व गुरू के चोले से।
इसके दुश्मन के घर को तुम,भर दो अपने शोले से।।
ऐसी तकनीकें तुम लाओ,अपने ज्ञान के गोले से।
दुश्मन धू-धू करता भागे,भारत माँ के रौले से।।
इसके दुश्मन के घर को तुम,भर दो अपने शोले से।।
ऐसी तकनीकें तुम लाओ,अपने ज्ञान के गोले से।
दुश्मन धू-धू करता भागे,भारत माँ के रौले से।।
-Pt Shobhit Awasthi
2. दोष क्या था उसका
पुष्प जो अंकुरित होने के,
पूर्व ही तोड़ दिया जाता है,
लगा था झटका एक क्षण
दशा के वृक्ष को,
मेरी सोच से परे है,
दोष क्या था उसका।
मूल्य का क्या था उसकी आशाओं का,
आशाओं का पहले ही मिलना था मिट्टी में,
मातृ सुख तो परे हैं,सूना है उद्यान उसका,
मेरे सोच के परे हैं,दोष क्या था उसका।
उद्यानो की शोभा क्या फल ही बढाते हैं,
है सूना मां से फूल बिना फल आते कहां से,
देखी रचना अपनी सच फूल बिना ना आते फल,
मेरे सोच के परे है,दोष क्या था उसका।
-दिनेश गर्ग 'कोलू'
पूर्व ही तोड़ दिया जाता है,
लगा था झटका एक क्षण
दशा के वृक्ष को,
मेरी सोच से परे है,
दोष क्या था उसका।
मूल्य का क्या था उसकी आशाओं का,
आशाओं का पहले ही मिलना था मिट्टी में,
मातृ सुख तो परे हैं,सूना है उद्यान उसका,
मेरे सोच के परे हैं,दोष क्या था उसका।
उद्यानो की शोभा क्या फल ही बढाते हैं,
है सूना मां से फूल बिना फल आते कहां से,
देखी रचना अपनी सच फूल बिना ना आते फल,
मेरे सोच के परे है,दोष क्या था उसका।
-दिनेश गर्ग 'कोलू'
3. माँ
जब ये शरीर थक हारकर घर जाता है, माँ तेरा प्यार बहुत याद आता है। पल-पल खोजता हु तुझे इन आँखों से,पर ना जाने क्यों तुझे ढूंढ नही पाता है। माँ तेरा प्यार बहुत याद आता है।
लेकिन किन माँ तो माँ होती है,बच्चे का दुःख उस्से देखा नहीं जाता है। एक हवा का झोंका तेरा एहसास करा जाता है, माँ तेरा प्यार बहुत याद आता है।
जब ये मन खुद को अकेला पाता है, इस छल रूपी दुनिया में रहा नहीं जाता है। लेकिन तेरी दुआओ का असर रह जाता है,माँ तेरा प्यार बहुत याद आता है।
इस दुनिया के प्रपंचो में खुद को उलझा हुआ पाता है, तो तेरे ममता के आसरे में ये मन खुद चला जाता है। माँ तेरी यादो का झरोखा ,इस नन्हे बेटे को रुला ही देता है, माँ तेरा प्यार बहुत याद आता है, माँ तेरा प्यार बहुत याद आता है।
- मयंक शुक्ला
4. अभीप्सा
भरी दोपहरी
गर्म रेत
तपते मरुथल
बढ़ती पिपासा
मरुधान हैं जिस ओर
रे मन चल उस ओर
गर्म रेत
तपते मरुथल
बढ़ती पिपासा
मरुधान हैं जिस ओर
रे मन चल उस ओर
घोर अंधेरा
मान घनेरा
सांसे जलती
गति मध्यम सी
ठहराव सा जिस ओर
रे मन चल उस ओर
मान घनेरा
सांसे जलती
गति मध्यम सी
ठहराव सा जिस ओर
रे मन चल उस ओर
प्रश्न भँवर हैं
उत्तर मौन हैं
चलते राही
उद्देश्य विहीन हैं
सूरज है जिस ओर
रे मन चल उस ओर
उत्तर मौन हैं
चलते राही
उद्देश्य विहीन हैं
सूरज है जिस ओर
रे मन चल उस ओर
रावण हँसता
राम सिमटता
जनता त्रस्त
सत्ता मस्त
सुशासन है जिस ओर
रे मन चल उस ओर।
राम सिमटता
जनता त्रस्त
सत्ता मस्त
सुशासन है जिस ओर
रे मन चल उस ओर।
- विकास कुमार
5. चार पंक्तियां
बात निकली है दिल से गगन तक जाएगी
आज फिर नदियां समंदर से टकराएगी
हिम्मत,जुनून कहने की बात नही होती
जब उठेगी तलवार सर से धड़ गिराएगी
आज फिर नदियां समंदर से टकराएगी
हिम्मत,जुनून कहने की बात नही होती
जब उठेगी तलवार सर से धड़ गिराएगी
- पंकज देवांगन
Sir meri rachna ka koi reply nahin aaya hai
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