हमारी द्वितीय काव्य प्रतियोगिता की विजेता हैं ‘‘नम्रता जी शर्मा‘‘ हमें आपको विजेता चुनते हुए अत्यंत खुशी एवं हर्ष है। हम आपके लेखन के क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए प्रतियोगिता काॅलम में आपकी रचना प्रस्तुत करते हैं-
सहेजकर अपने हाथों में नन्हें नन्हें पग,
कहती होगी लाल से माँ जब देखेगा ये जग ।
चलना होगा तुझको खुद ही अपने इन कदमो से ,
नहीं होगी माँ की गोदी जो भरती तेरे दुःख दर्दों से।
सहेजकर अपने हाथों में नन्हें नन्हें पग,
कहती होगी लाल से माँ जब देखेगा ये जग ।
चलना होगा तुझको खुद ही अपने इन कदमो से ,
नहीं होगी माँ की गोदी जो भरती तेरे दुःख दर्दों से।
बस मे होता मेरे तो पढ़ लेती तेरे पैर की रेखाएं ,
मिटा देती वो लकीरें जो लाएगी जीवन में बाधाएं ।
यह असंभव है लाल मेरे पर इतना बस में है मेरे,
संभालुगी जतन से कर दूँगी इतने मजबूत पाव तेरे ।
चाहे जिन्दगी में फिर कितनी भी मुश्किलें आए ,
चल सके तू निडर अकेला पैर न तेरे लड़खड़ाए ।
चलना पड़े अकेला तो थाम लेना बेसहारा हाथ ,
सच की राह मत छोड़ना देना खुद अपना साथ ।
-रचनाकार नम्रता शर्मा
शानदार।
ReplyDeleteधन्यवाद यश जी आपका बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteधन्यवाद यश जी आपका बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteसुनील जी आपका भी आभार
ReplyDeleteसुनील जी आपका भी आभार
ReplyDeleteयश जी प्रथम लाइन इस तरह है
ReplyDeleteसहेजकर अपने हाथों में नन्हें -नन्हें पग.
सहेजकर नही दिख रहा है ।
यश जी प्रथम लाइन इस तरह है
ReplyDeleteसहेजकर अपने हाथों में नन्हें -नन्हें पग.
सहेजकर नही दिख रहा है ।
Very nice poem.....
ReplyDeleteधन्यवाद आपको
ReplyDeleteधन्यवाद आपको
ReplyDeleteGreat
ReplyDeleteBadhaB ho NamrataNji
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